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सड़क दुर्घटना के पीड़ितों को मिलेगा कैशलेस उपचार, देशभर में नियम लागू करने की तैयारी; पढ़ें क्या है केंद्र का प्लान

विडंबना है कि दुनिया की आबादी के लिहाज से वाहनों की संख्या में एक प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाला भारत, सड़क दुर्घटनाओं से मौत के वैश्विक आंकड़ों में 10 प्रतिशत से ज्यादा की हिस्सेदारी रखता है। इन मौतों का प्रमुख कारण घायलों को समय से इलाज नहीं मिल पाना है। इसे देखते हुए मोदी सरकार ने मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 162 में वर्ष 2019 में संशोधन करते हुए सड़क दुर्घटनाओं के कैशलेस इलाज को कानूनी अनिवार्यता दे दी। पायलट प्रोजेक्ट के तहत यह योजना अभी छह राज्यों-केंद्र शासित प्रदेशों में चल रही है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को लोकसभा में बताया कि पायलट प्रोजेक्ट के निष्कर्षों को व्यावहारिकता की कसौटी पर कसते हुए अब इस सुविधा को देशभर में लागू करने की तैयारी है।

इन राज्यों में लागू है योजना
उन्होंने बताया कि कैशलेस इलाज की योजना अभी असम, हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड, चंडीगढ़ और पुडुचेरी में लागू है। आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के तहत ट्रामा और पालीट्रामा के लिए स्वास्थ्य लाभ पैकेज दिया जा रहा है। मोटर वाहनों के उपयोग से होने वाली सड़क दुर्घटना के पीड़ितों को प्रति दुर्घटना अधिकतम 1.5 लाख रुपये तक कैशलेस उपचार दिए जाने की व्यवस्था है। पीड़ितों को यह राहत दुर्घटना की तिथि से अधिकतम सात दिन में ही दी जा रही है। मंत्री ने कहा कि दुर्भाग्य की बात है कि हमारे देश में रोड एक्सीडेंट बढ़ रहे हैं। नीति आयोग और एम्स की रिपोर्ट के हिसाब से 30 प्रतिशत मृत्यु जो हुई हैं, वह दुर्घटना के तुरंत बाद स्वास्थ्य सेवाएं न मिलने के कारण हुईं। इसीलिए यह कैशलेस योजना लाई गई थी।

अब तक 2100 लोगों की बचाई गई जान
अभी तक इससे 2100 लोगों की जान बची है और अधिकतम 1,25,000 रुपये ही इलाज के लिए देने की जरूरत पड़ी है। जल्द ही यह योजना उत्तर प्रदेश में शुरू हो रही है और योजना के सकारात्मक परिणाम के आधार पर तीन माह में पूरे देश में लागू करने का विचार है।

‘सड़क हादसों की बात पर अपना मुंह छिपा लेता हूं’
गडकरी ने कहा कि जब वह अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में विदेश जाते हैं और सड़क हादसों पर चर्चा होती है तो हाथों से अपना मुंह छिपाने का प्रयास करते हैं। लेन की अनुशासनहीनता को सड़क हादसों का प्रमुख कारण बताते हुए उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि जब उन्होंने कार्यभार संभाला था, तब हादसों को पचास प्रतिशत घटाने का लक्ष्य तय किया था। आज हादसे घटने की बात तो भूल जाइए, यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि सड़क हादसों की संख्या बढ़ गई है। गडकरी ने यातायात नियमों की अनदेखी पर चिंता जताते हुए अपना उदाहरण भी दिया कि उनकी कार का भी दो बार मुंबई में चालान हो चुका है। यातायात नियमों के प्रति मानव व्यवहार और समाज के बदलाव पर जोर देते हुए मंत्री ने बताया कि उनका स्वयं का परिवार भी सड़क हादसे का शिकार हुआ था, तब उन्हें लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था।

अनुशासन न होना बड़ी समस्या: गडकरी
उन्होंने कहा कि तेज रफ्तार बड़ी समस्या नहीं है, क्योंकि दुनिया में लोग तेज गाड़ी ही चला रहे हैं। भारत में बड़ी समस्या लेन का अनुशासन न होने से है। सड़क पर ट्रकों की पार्किंग और ट्रकों द्वारा लेन का पालन न किए जाने से भी बहुत हादसे होते हैं। युवाओं को यातायात अनुशासन के बारे में शिक्षित करने की जरूरत है। बच्चों को भी यातायात नियमों के महत्व के बारे में संवेदनशील बनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘भारत में मानव व्यवहार को बदलना होगा, समाज को बदलना होगा और कानून का सम्मान करना होगा। सड़कों पर यातायात कानून का उल्लंघन जांचने के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। सभी संसद सदस्यों को चाहिए कि वे अपने संसदीय क्षेत्र में यातायात जागरूकता से जुड़े कार्यक्रम आयोजित करें।’

मरने वाले 60 प्रतिशत की उम्र 18-34 वर्ष
पीटीआई के अनुसार, देश में प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटनाओं में 1.78 लाख लोगों की मौत होती है। इनमें 60 प्रतिशत यानी सर्वाधिक संख्या 18-34 वर्ष आयुवर्ग के युवाओं की होती है। गडकरी ने इस बात पर दुख जताया कि लोगों में कानून का डर नहीं है और तमाम लोग बिना हेलमेट के दोपहिया वाहन चलाने के साथ लाल बत्ती पार करते हैं। सड़क दुर्घटनाओं में मरने वालों की संख्या के मामले में उत्तर प्रदेश राज्यों में, जबकि दिल्ली शहरों में सबसे ऊपर है। उत्तर प्रदेश में एक वर्ष में 23,000 मौतें दर्ज की गईं, जो कुल मौतों का 13.7 प्रतिशत है। इसके बाद तमिलनाडु का नंबर आता है, जहां 18,000 यानी 10.6 प्रतिशत लोगों की जान सड़क हादसों में गई। महाराष्ट्र में यह आंकड़े 15,000 या कुल मौतों का नौ प्रतिशत हैं और इसके बाद मध्य प्रदेश का नंबर आता है, जहां 13,000 मौतें (आठ प्रतिशत) दर्ज की गईं। शहरों की बात करें तो 1,400 मौतों के साथ दिल्ली नंबर एक पर है। इसके बाद बेंगलुरु (915) और तीसरे नंबर पर 850 मौतों के साथ जयपुर आता है।

लोकसभा ने आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक को दी मंजूरी
लोकसभा ने गुरुवार को आपदा प्रबंधन (संशोधन) विधेयक, 2024 को मंजूरी दे दी। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकारों की कार्य क्षमता बढ़ाना, उनकी भूमिका को लेकर स्पष्टता लाना तथा उनके बीच अधिक समन्वय सुनिश्चित करना है।

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