अब उत्तराखंड में पिरूल से बनेगा ईंधन, चंपावत में लगाई जाएगी ब्रिकेटिंग यूनिट; आइआइपी और यूकास्ट ने सपना किया पूरा
पिरूल से ईंधन बनाने की तकनीक भारतीय पेट्रोलियम संस्थान (आइआइपी) ने ईजाद की है और इस तकनीक को धरातल पर उतारेगा उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकास्ट)। इस तकनीक के आधार पर चंपावत में पिरूल आधारित ब्रिकेटिंग (ईंटनुमा ईंधन ब्लाक) यूनिट लगाई जाएगी। यूनिट को लगाने के लिए बुधवार को आइआइपी और यूकास्ट के बीच करार किया गया। यूकास्ट के झाझरा स्थित कार्यालय में करारनामे पर यूकास्ट के महानिदेशक प्रो. दुर्गेश पंत और आइआइपी के निदेशक डा. हरेंद्र सिंह बिष्ट ने हस्ताक्षर किए।
ब्रिकेटिंग यूनिट की जाएगी स्थापित
इस अवसर पर यूकास्ट महानिदेशक प्रो. पंत ने कहा कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में आदर्श चंपावत परियोजना पर काम किया जा रहा है। लिहाजा, इस दिशा में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आधारित दो प्रमुख तकनीक को चंपावत में धरातल पर उतारने का निर्णय लिया गया है। जिसमें पिरूल आधारित 50 किलो प्रति घंटा क्षमता वाली ब्रिकेटिंग यूनिट स्थापित की जाएगी।
चंपावत की बदल जाएगी तस्वीर
ब्रिकेट से चलने वाले 500 उन्नत चूल्हों का प्रयोग ग्रामीण घरों में ऊर्जा संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से कराया जाएगा। इस ब्रिकेटिंग यूनिट को महिला सशक्तिकरण परियोजना के अंतर्गत चंपावत में बनने वाले एनर्जी पार्क में स्थापित किया जाएगा। साथ ही ब्रिकेट पर प्रयोग ईंधन के रूप में घरों और उद्योगों में किया जाएगा।
पर्यावरण संरक्षण के लिए पिरूल जरूरी
कार्यक्रम में आइआइपी के निदेशक डा. हरेंद्र सिंह बिष्ट ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण और जंगल की आग को रोकने के लिए पिरूल का प्रबंधन जरूरी है। इस तरह की परियोजना इस काम में कारगर साबित हो सकती है। उन्होंने बताया कि ब्रिकेट और छर्रों के रूप में पिरूल खाना पकाने के ईंधन के साथ-साथ ईंट भट्ठों और थर्मल पावर प्लांट में प्रत्यक्ष या सह-फायरिंग ईंधन के रूप में प्रयोग में लाया जा सकता है। इस अवसर पर आइआइपी के प्रमुख विज्ञानी पंकज आर्य, डा. सनत कुमार, डा. जीडी ठाकरे, यूकास्ट के संयुक्त निदेशक डा डीपी उनियाल, पूनम गुप्ता आदि उपस्थित रहे।
प्रदूषण को 70 प्रतिशत तक कम करेगा उन्नत चूल्हा
आइआइपी के निदेश डा. बिष्ट के मुताबिक उन्नत चूल्हा पिरूल ब्रिकेट के साथ 35 प्रतिशत की ऊर्जा दक्षता से काम करता है और घरेलू प्रदूषण को 70 प्रतिशत तक कम कर सकता है।