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उत्तराखंड में यूसीसी लागू करने की ओर सरकार, मौलाना और उलेमा ने कह दी ये बात

-योशिता पांडेय

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने की ओर सरकार ने कदम बढ़ा दिया है। मंगलवार को विधानसभा में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यूसीसी विधेयक पेश किया। इसके साथ ही उत्तराखंड में सभी इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। ऐसे में मौलानाओं ने भी यूसीसी को लेकर प्रतिक्रिया दी। राज्य में समान नागरिक संहिता लागू होने से पहले विधानसभा पटल में रखे गए विधेयक पर मुस्लिम धर्मगुरुओं (उलेमा) की मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिली। किसी ने कानून को देशभर में लागू करने की बात कही तो किसी ने कहा कि समान नागरिक संहिता पर और मंथन करने की जरूरत थी।

ऐसी रही मौलाना और उलेमा की प्रतिक्रिया
पूरा देश जानता है कि कानून कैसे बन रहा है। इस कानून को लेकर मुस्लिम समाज की ओर से दी गई आपत्तियों को दरकिनार किया गया। मुस्लिमों के सुझाव को भी इसमें जगह नहीं दी गई। संवैधानिक दायरे में रहते हुए इस कानून के विरुद्ध लड़ेंगे। यह सिर्फ धर्म विशेष के विरुद्ध है। – मौलाना मोहम्मद अहमद कासमी, शहर काजी।

जिस कानून को सभी धर्मों के लिए बनाने की बात कही जा रही हो और उसी में सभी धर्मों का प्रतिनिधित्व ना हो तो संदेह पैदा होता ही है। पता चला है कि इस कानून के ड्राफ्ट में जनजाति व अनुसूचित जाति को बाहर रखा गया है। एक राज्य में दो कानून कैसे हो सकते हैं। मुस्लिमों को टारगेट कर जबरन थोपे जा रहे इस कानून की हम निंदा करेंगे। इस कानून का ड्राफ्ट बनाने में दर्ज आपत्तियों को देखा नहीं गया। – मुफ्ती रईस अध्यक्ष, इमाम संगठन

कानून सभी के लिए समान होता है लेकिन सदन में पेश समान नागरिक संहिता विधेयक में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा। संविधान हमें शरीयत पर चलने की अनुमति प्रदान करता है, लेकिन समान नागरिक संहिता इससे मुस्लिम समाज को वंचित कर रहा है। इसका गहन अध्ययन कर सरकार से वार्ता करेंगे। -मोहम्मद शाहनजर, प्रदेश प्रवक्ता, जमीयत उलेमा ए हिंद

समान नागरिक संहिता के ड्राफ्ट में यदि शरीयत का लिहाज रखा गया है तो मुसलमान इस कानून को मानेगा। यदि यह शरीयत के उसूलों के विरोध में है तो मुस्लिम इसे मानने पर मजबूर नहीं होगा। देश के मुसलमानों ने हमेशा कानून का सम्मान किया व करते रहेंगे। लेकिन शरीयत के विरोध में नहीं जा सकते। हम उस कानून को मानेंगे जिससे शरीयत को नुकसान ना पहुंचाया गया हो। -सैयद अशरफ हुसैन कादरी, प्रदेश अध्यक्ष, ऑल इंडिया मुस्लिम जमात

यह कोई ऐसी चीज नहीं है जिससे मुस्लिमों पर ज्यादा फर्क पड़ेगा। तीन तलाक का कानून केंद्र सरकार पहले ही लागू कर चुकी है, लेकिन अब नए तलाक के लिए इसकी क्या जरूरत पड़ी। सिविल कोर्ट इसलिए ही बनी हुई हैं कि इंसान वहां जाकर न्याय की अपील कर सके। जो लोग न्यायालय जाते हैं वह पहले भी जाते थे और आगे भी जाते रहेंगे। जिन्हें राजनीति करनी है वही इस पर ज्यादा शोर मचाएंगे। -नईम कुरैशी, अध्यक्ष मुस्लिम सेवा संगठन

किसी एक जगह व कुछ वर्ग के लिए बनाया गया कानून समाज को जोड़ने वाला नहीं होता। हां यदि यह कानून देशभर में लागू होता तो किसी मुस्लिम को आपत्ति नहीं होती। यह जल्दबाजी में लाया कानून है, इस पर और मंथन जरूरी था। जिस दिन कमेटी बनी उसी दिन किसी भी वर्ग के बुद्धिजीवी को इसमें शामिल नहीं किया गया। इस कानून में सरकार के एक देश, संविधान व कानून की बात कहीं नहीं दिख रही। -लताफत हुसैन, केंद्रीय अध्यक्ष, तंजीम-ए-रहनुमाए-मिल्लत

 

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