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Nainital समेत चार शहरों का होगा लिडार सर्वे, सुरक्षित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाने में मिलेगी मदद

उत्तराखंड में नैनीताल, उत्तरकाशी, चमोली और अल्मोड़ा का जल्द लिडार सर्वे होगा। यह जानकारी उत्तराखंड भूस्खलन न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के निदेशक शांतनु सरकार ने दी। उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से आयोजित कार्यशाला में उन्होंने बताया कि हेलीकाप्टर और ड्रोन के माध्यम से होने वाले लिडार सर्वे से प्राप्त होने वाले डाटा को विभिन्न विभागों के साथ साझा किया जाएगा। जिससे सुरक्षित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। उन्होंने कहा कि भूस्खलन संभावित क्षेत्रों में राक फाल टनल बनाकर भी यातायात को सुचारु बनाए रखा जा सकता है तथा जन हानि की घटनाओं को कम किया जा सकता है। इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रिमोट सेंसिंग के डा. सुरेश कनौजिया ने कहा कि नासा-इसरो सार मिशन (निसार) इसी साल लांच होगा। इस तकनीक की आपदा प्रबंधन में बड़ी उपयोगिता होगी। उन्होंने कहा कि भूस्खलन न्यूनीकरण के लिए भू-संरचना तथा स्लोप पैटर्न में आ रहे बदलावों को समझना आवश्यक है। यूएलएमएमसी के प्रमुख सलाहकार डा. मोहित पूनिया ने भू-तकनीकी जांच व ढाल स्थिरता विश्लेषण पर बात रखी। आइआइटी रुड़की के डा. एसपी प्रधान ने कहा कि भूस्खलन को रोकने के लिए ग्राउटिंग तकनीक कारगर है, बस इसे कास्ट इफेक्टिव बनाया जाना जरूरी है।

हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड सबसे ज्यादा संवेदनशील
वाडिया भूविज्ञान संस्थान के निदेशक डा. कालाचांद सेन ने कहा कि हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड भूस्खलन से लिहाज से सबसे ज्यादा प्रभावित और संवेदनशील है। भूस्खलन की घटनाओं को कम करने के लिए सबसे अधिक प्रभावित क्षेत्रों की मैपिंग की जानी जरूरी है और वह डाटा सिटी प्लानर्स को उपलब्ध करवाकर सुरक्षित निर्माण कार्यों को आगे बढ़ाया जाना चाहिए। हिमालय बहुत संवेदनशील है और मानवीय गतिविधियों के कारण उसे काफी नुकसान पहुंच रहा है। इस पर गंभीर चिंतन जरूरी है।

अर्ली वार्निंग तकनीक हो सकती है कारगर
उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सचिव डा. रंजीत कुमार सिन्हा ने कहा कि इनसार इंसार (इंटरफेरोमेट्रिक सिंथेटिक-एपर्चर रडार) भूस्खलन के दृष्टिकोण से अर्ली वार्निंग को लेकर सबसे आधुनिकतम तकनीक है। यह तकनीक सेटेलाइट और ड्रोन आधारित है। सेटेलाइट आधारित तकनीक का इस्तेमाल करके भूस्खलन होने से पहले अर्ली वार्निंग मिल सकेगी। इस तकनीक को किस तरीके से उपयोग में लाया जा सकता है, इसे लेकर भारत सरकार और राज्य सरकार के स्तर पर विचार-मंथन चल रहा है।

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