समीकरण बनाने और बिगाड़ने में किसान सब पर भारी, अनदेखी नहीं कर सकते नेताजी

देहरादून लोकतंत्र के महोत्सव में मैदान में उतरे सियासी दलों ने यदि किसानों को अपनी प्राथमिकता में रखा है तो इसके पीछे बड़ी वजह भी है। चुनाव चाहे विधानसभा के हों अथवा लोकसभा के, सभी में समीकरण बनाने व बिगाड़ने में उनकी भूमिका रहती है। यानी, चुनावी गणित में किसी न किसी रूप में असर डालने वाला यह बड़ा समूह है। उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में देखें तो ऊधम सिंह नगर व हरिद्वार जिलों के 16 और नैनीताल के तीन विधानसभा क्षेत्रों में किसान सीधे-सीधे प्रभाव डालते हैं। राज्यभर में किसानों की संख्या 10.45 लाख है और वे लोकतंत्र के उत्सव में अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभाते आ रहे हैं। ऐसे में कोई भी राजनीतिक दल किसानों की मतरूपी ताकत की अनदेखी करने की स्थिति में नहीं दिखता। उत्तराखंड की कृषि व्यवस्था पर नजर दौड़ाएं तो यह मैदानी, पहाड़ी व घाटी वाले क्षेत्रों में बंटी है। अधिकांश जोत बिखरी और छोटी हैं। इसीलिए यहां के किसानों को सीमांत और लघु कहा जाता है। बड़ी जोत वाले किसान तराई व भाबर क्षेत्र में हैं।
यही नहीं, खेती-किसानी तमाम झंझावत से भी जूझ रही है। पहाड़ में मौसम की बेरुखी, वन्यजीवों से फसल क्षति, पलायन जैसे कारणों से खेती प्रभावित हुई है तो मैदानी क्षेत्रों में शहरीकरण समेत अन्य कारणों से। यद्यपि, पिछले कुछ वर्षों में केंद्र एवं राज्य सरकारों की ओर से खेती-किसानी पर ध्यान केंद्रित किए जाने सार्थक परिणाम आए हैं, लेकिन अभी कृषि की दशा सुधारने को बहुत कुछ किया जाना शेष है।
बावजूद इसके राज्य के किसान अब समय के साथ कदम मिलाते हुए व्यावसायिक दृष्टिकोण भी अपनाने लगे हैं। इसका उन्हें लाभ मिला है। तमाम विपरीत परिस्थितियों से जूझने के बावजूद राज्य में अन्नदाता लोकतंत्र के महोत्सव में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाता आया है। संख्यात्मक दृष्टि से देखें तो उत्तराखंड में किसानों की संख्या 1045674 है।
पर्वतीय जिलों (देहरादून, नैनीताल व पौड़ी जिलों के मैदानी क्षेत्र सहित) में किसानों की संख्या 863047 है, जबकि विशुद्ध रूप से मैदानी ऊधम सिंह नगर व हरिद्वार जिलों में इनकी संख्या 182627 है। ये आंकड़े अर्थ एवं संख्या निदेशालय की सांख्यिकीय डायरी-2019-20 के हैं। वर्तमान में दोनों ही जगह किसानों की संख्या में वृद्धि होने से ये आंकड़े स्वाभाविक रूप से बढऩे तय हैं। हरिद्वार, ऊधम सिंह नगर जिलों के आठ-आठ विस क्षेत्र सीधे तौर पर किसान बहुल हैं। देहरादून के तीन और नैनीताल के एक विस क्षेत्र में किसान निर्णायक भूमिका में दिखते हैं। इन जिलों में मंझोले और बड़े किसानों की अच्छी-खासी संख्या है। इस परिदृश्य में पहाड़ अथवा मैदान में कोई भी दल या प्रत्याशी यहां किसानों की अनदेखी करने की स्थिति में नहीं है। सभी का प्रयास है कि वे किसानों को अपने-अपने पाले में खींचें। इसके लिए वे ऐड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए हैं। देखने वाली बात होगी कि उनके ये प्रयास कितना रंग जमा पाते हैं।
उत्तराखंड में जिलावार किसान
अल्मोड़ा 1,32,129
नैनीताल 1,01,221
टिहरी 97,523
उत्तरकाशी 96,836
यूएसनगर 94,677
हरिद्वार 87,950
पिथौरागढ़ 87,189
पौड़ी 75,253
चमोली 69,612
देहरादून 60,373
रुदप्रयाग 56,884
बागेश्वर 54.056
चंपावत 31,971