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‘उत्तराखंड के धधकते जंगलों पर काबू करने की राज्य की कार्रवाई चिंताजनक’, SC ने मुख्य सचिव को कोर्ट में किया तलब

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग को काबू करने में राज्य सरकार के लचर रवैये पर नाराजगी जताते हुए उत्तराखंड के मुख्य सचिव को 17 मई को कोर्ट में तलब किया है। कोर्ट ने मुख्य सचिव को अदालत में पेश होकर फंड के उपयोग और वन विभाग की रिक्तियों आदि पर स्पष्टीकरण देने को कहा है। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि वन विभाग के वाहन और स्टाफ का चुनाव ड्यूटी या अन्य किसी उद्देश्य में इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। चारधाम यात्रा में भी उनका इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
शीर्ष अदालत ने कहा कि उन्हें यह कहते हुए बहुत दुख हो रहा है कि जंगल की आग को काबू करने में राज्य सरकार का रवैया बहुत ही ढीला रहा। कार्ययोजना तैयार की गई लेकिन उसे लागू करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया।

कोर्ट ने स्थिति पर जताया दुख
कोर्ट ने स्थिति को खेदजनक बताते हुए कहा कि राज्य सरकार बस कोई न कोई बहाना ढूंढ रही है। ये आदेश और टिप्पणियां न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग का मुद्दा उठाने वाली अर्जी पर सुनवाई के दौरान बुधवार को दिये। कोर्ट ने राज्य सरकार की ओर से फंड और मानव संसाधन की कमी पर केंद्र सरकार की ओर से पेश एडीशनल सालिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी से पूछा कि केंद्र सरकार ने कितना फंड जारी किया था।

इस वर्ष के लिए कैंपा फंड से 10 करोड़ का फंड मंजूर
भाटी ने बताया कि केंद्र सरकार ने कम्पन्सेटरी एफोरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग (कैंपा) फंड से केंद्रीय अथारिटी ने 2022-2023 के लिए 9.12 करोड़ की मंजूरी दी थी। और इस वर्ष के लिए भी 10 करोड़ का फंड मंजूर किया गया है। कोर्ट ने कहा कि जब केंद्रीय अथारिटी ने मंजूरी दे दी थी और फंड राज्य सरकार के पास उपलब्ध था तो फिर क्या कारण था कि राज्य सरकार ने 9.12 करोड़ में से सिर्फ 3.41 करोड़ के फंड का ही वन कार्यों के लिए उपयोग किया। बाकी के फंड का वन कार्यों में उपयोग क्यों नहीं किया गया।

कोर्ट ने राज्य आपदा प्रबंधन राशि न जारी होने का भी मुद्दा उठाया
कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन राशि और राज्य आपदा प्रबंधन राशि न जारी होने का मुद्दा उठाए जाने पर कहा कि यह समझ से परे है कि राज्य सरकार राज्य आपदा प्रबंधन राशि जारी न होने को आधार कैसे बना सकती है जबकि राज्य आपदा प्रबंधन राशि जारी करना राज्य सरकार के हाथ में है। मानव संसाधन की कमी पर पीठ ने कहा कि एक तरफ तो राज्य मानवसंसाधन की कमी का रोना रो रहा है और दूसरी ओर बड़ी संख्या में रिक्तियां पड़ी हैं। कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि वह 17 मई को कोर्ट में व्यक्तिगत तौर पर पेश होकर कैंपा फंड के उपयोग पर स्पष्टीकरण देंगे। वह बताएंगे कि केंद्र से 2022-2023 के लिए कैंपा फंड से 9.12 करोड़ की मंजूरी होने के बावजूद राज्य सरकार ने उसमें से सिर्फ 3.4 करोड़ ही क्यों खर्च किया।

मुख्य सचिव ने इन बिंदुओं को किया स्पष्ट
मुख्य सचिव यह भी स्पष्ट करेंगे कि क्या उस फंड का वन से जुड़ी गतिविधियों के अलावा किसी और काम में इस्तेमाल किया गया है। मुख्य सचिव राज्य आपदा प्रबंधन राशि जारी करने के लिए उठाए गए कदमों और वन विभाग के खाली पड़े पदों को भरने के बारे में भी स्पष्टीकरण देंगे। यह भी बताएंगे कि खाली पदों को भरने में कितना समय लगेगा और अति ज्वलनशील चीड़ के पेड़ों के कारण जंगल में लगने वाली आग को काबू करने के लिए राज्य सरकार ने क्या उपाय किये हैं। कोर्ट ने कहा कि पिछली सुनावई पर राज्य सरकार की ओर से जो गुलाबी तस्वीर पेश की गई थी वह सही नहीं थी। कोर्ट ने इस बात को भी नोट किया कि चुनाव आयोग द्वारा छूट दिये जाने के बावजूद वन विभाग के कर्मचारियों की चुनाव में ड्यटूी लगाई गई।

कोर्ट ने दिए ये आदेश
कोर्ट ने आदेश दिया कि वन कर्मियों और वन विभाग के वाहनों को चुनाव या अन्य किसी उद्देश्य जैसे चारधाम यात्रा के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। इससे पहले राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि जंगल की आग को काबू करने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं और क्या क्या उपाय किये जा रहे हैं। राज्य सरकार के वकील ने कहा कि कोर्ट एक समिति गठित करे जिसमें केंद्रीय अधिकारिता समिति (सीईसी), केंद्र, और राज्य सरकार के प्रतिनिधि हों जो इस मुद्दे से निपटने के लिए समग्र सुझाव दें।

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