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पंचायत चुनाव के जरिये मैदानी जिलों में जड़ें मजबूत करेगी बसपा

प्रदेश में तीसरी सबसे मजबूत राजनीति पार्टी के रूप में स्थापित बसपा अब पंचायत चुनाव के जरिये अपना पुराना वोट बैंक वापस पाने की जुगत में लग गई है। बसपा का सबसे मजबूत आधार हरिद्वार में है लेकिन वहां चुनाव नहीं हो रहे हैं। ऐसे में बसपा सभी 12 जिलों में तैयारी कर रही है, लेकिन विशेष रूप से मैदान जिलों में जोर लगाया जा रहा है। इसके लिए संभावित दावेदारों के साथ बैठकों का दौर शुरू हो चुका है। पार्टी पंचायत चुनाव के जरिये वर्ष 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव की भूमिका भी तैयार कर रही है। राज्य गठन के बाद उत्तराखंड में बसपा का अपना एक मजबूत जनाधार रहा है। राज्य गठन के बाद वर्ष 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में बसपा ने 10.93 प्रतिशत मत लेकर सात सीटों पर कब्जा जमाया था। वर्ष 2007 में हुए दूसरे विधानसभा चुनाव में बसपा ने 11.76 प्रतिशत मत के साथ आठ सीटें कब्जाईं। वर्ष 2012 में बसपा का मत प्रतिशत तो बढ़ कर 12.19 प्रतिशत तक पहुंचा, लेकिन सीटों की संख्या घट कर तीन पहुंच गई। वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा को केवल 6.98 प्रतिशत मत मिले और उसकी झोली खाली रही। वर्ष 2022 में बसपा का मत प्रतिशत कम होकर 4.9 प्रतिशत तक तो पहुंचा लेकिन उसके दो प्रत्याशी चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंचने में सफल रहे। इनमें से अब एक का स्वर्गवास हो चुका है और वह सीट कांग्रेस के खाते में गई है। फिलहाल बसपा का अभी एक ही विधायक है। बात करें पंचायत चुनावों की तो बसपा का मैदानी जिलों में प्रदर्शन अपेक्षाकृत अच्छा है। ऊधम सिंह नगर, नैनीताल, अल्मोड़ा, देहरादून के सहसपुर व विकासनगर क्षेत्रों में उसके समर्थित प्रत्याशी पंचायत सदस्य, ब्लाक प्रमुख व प्रधान बनने में सफल रहे हैं।
बसपा ने चुनावों में अभी तक जो सीटें जीती हैं, उनमें से अधिकांश सीटें अनुसूचित जाति और मुस्लिम बहुल रही हैं। यही बसपा का सबसे बड़ा वोट बैंक भी है। यह वोट बैंक बीते वर्षों में बसपा से छिटका है। पंचायत चुनाव के जरिये एक बार फिर पार्टी अपने पुराने वोट बैंक के साथ ही अन्य वर्गों में भी अपनी पैठ बनाने का प्रयास कर रही है।

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